1/04/2009

सूरज नई सदी का




देखें क्या-क्या कर पाता है सूरज नई सदी का,

तम को कितना हर पाता है सूरज नई सदी का ।


देख नज़रें थक बैठी है हर चेहरे की आंखें,

कितनी नज़रों को भाता है सूरज नई सदी का ।


गांवों की गलियों में मांगू आस लगाए बैठा,

क्या उसके भी घर जाता है सूरज नई सदी का ।


हर पल जो मरता रहता है उसके जीवन की खातिर,

कब-कब कितना मर पाता है सूरज नई सदी का ।


बीज फ़सादों के जितने भी बोए गई सदी ने,

उनमें क्या अन्‍तर लाता है सूरज नई सदी का ।


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आशीष दशोत्‍त ‘अंकुर’ की एक गजल


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1 comment:

  1. गांवों की गलियों में मांगू आस लगाए बैठा,
    क्या उसके भी घर जाता है सूरज नई सदी का ।
    सभी को बहुत ऊमीद है इस सुरज से...
    बहुत ही सुंदर कविता आप ने लिखी है, बहुत ही सुंदर भाव
    धन्यवाद

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