आज
पहली बार महसूस हुआ
सुबह की लालिमा में फीकापन
पक्षियों के कलरव में नीरसता
फूलों में ताजगी का अभाव
तुम्हारे जाने के बाद ।
शायद
और भी नाराज है
तुम्हारे जाने से
तभी तो बादलों ने
निकलने नहीं दिया सूरज को
दिन भर की कोशिश के बाद भी
नहीं भेद पाई सूरज की चुभती निगाहें
बादलों के विश्वास को
यही विश्वास
बल दे रहा है
मेरे विश्वास को
तुम्हारे जाने के बाद ।
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संजय परसाई की एक कविता
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इस सूम्दर कविता के लिये संजय जी ओर आप का धन्यवाद
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