1/29/2009

नव वर्ष

आया नव वर्ष
लेकिन ढेरों दुःख लेकर
पहले ही दिन
पहले ही प्रहर
घट गई दुर्घटना पिताजी के साथ
जान बची लाखों पाए
चढ़ गया प्लास्टर डेढ़ माह का।
नववर्ष ने दी
पहली दस्तक

वो भी इतनी करारी
कि उठने न दिया पिताजी को
डेढ़ माह से पहले।
बीते वर्ष की बिदाई
लग रही थी
बेटी की बिदाई सी
क्योंकि/उसने रखा था ख्याल
पूरे परिवार का
बारह महीनों ।
नहीं दिया उसने दु:ख
जनवरी में ही दी सौगात
तीन अन्तरराष्ट्रीय
हस्तियों से मिलने की ।
खेल मेले में
मुलाकात हुई
मल्लेश्वरी से
तो कला परिषद् ने मिलाया
हबीब तनवीर से
सबसे ज्यादा खुशी हुई
गायक अनवर के
अठारह घण्टे साथ रहने पर।
वर्ष के मध्य में भी दिए
कई अवसर
प्रगति के ।
और दिसम्बर दे गया
सृजन की एक नई राह
जिस पर/
कई रचनाओं ने लिया जन्म
उनमें कई तो ऐसी
जिन्हें बरसों से चाह रहा था
कागज पर उतारना ।
इसलिए मन नहीं किया
उससे बिछ़ड़ने का
लेकिन
सांसों की सुइयों
और घ़ड़ी की टिक-टिक ने
बारह बजते ही कर दिया
निष्प्राण
और छोड़ गया बीता वर्ष
अपनी यादें
अतीत के रुप में ।
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संजय परसाई की एक कविता



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1 comment:

  1. नाव वर्ष का कहर कहें. बहरहाल अच्छी कविता है. आभार.

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