1/11/2009

गुम गया बाजार में



मेरी मुट्ठी देखकर क्यों आपका दिल डर गया,
आपने ही तो कहा था, डर गया वो मर गया ।

छोड़कर माँ-बाप को निकला कमाने रोटियाँ,
गुम गया बाज़ार में वो लौटकर ना घर गया ।

वो तो खुद्दारी थी उसकी जो खड़ा हरदम रहा,
वरना देखो पेड़ का हर एक पत्ता झर गया ।

शाम को आँगन से सिगड़ी के धुँए उठते नहीं,
रात में तापें किसे वो गुनगुना मंज़र गया ।

सत्य कहने की सज़ा कैसे सुनाएँ आपको,
जो कोई गुज़रा यहां से मुँह बिचकाकर गया ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल


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2 comments:

  1. छोड़कर माँ-बाप को निकला कमाने रोटियाँ,
    गुम गया बाज़ार में वो लौटकर ना घर गया
    achchhi gajal hai

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  2. बहुत सुंदर रचना.
    धन्यवाद

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