1/20/2009

सयानी हो गई है बिटिया


प्रतीक्षा

अभी से करने लगी है

सयानी बातें

तीसरा जन्म दिन

अभी कुछ दिनों

पहले ही गया है

लेकिन

अभी से होने लगा है

उसके बड़े होने का

अहसास ।


कभी भैया को समझाती

तो कभी मम्मी और दादी को

हां, कभी-कभी तो

दादाजी को भी

सलाह देने से नहीं चूकती ।


इस साल जुलाई

में दिलाना है स्कूल में दाखिला

डांस क्लास की जिद भी करती है

लेकिन

ऑफिस जाते वक्त

कभी नहीं करती जिद

बाय, टाटा, शाम को जल्दी आना

बस !

सोचता हूं

कहां से आ गई इतनी समझ ।

ऑफिस के अलावा

नहीं जाने देती कहीं अकेला

वहां सयानापन

हो जाता है काफूर

सचमुच वर्तमान में

लौट आती है

प्रतीक्षा

और करने लगती है जिद

वो भी ऐसी/कि

छोड़ देती है पीछे

दूसरे बच्‍चों को ।

कुछ देर बाद

फिर वही सयानी बातें।

उस दिन

राम मन्दिर से

लौटते हुए

मैंने पूछ लिया

प्रतीक्षा क्या खाओगी ?

तो/तपाक से बोली

रोज-रोज बाजार की

चीजें नहीं खाते

पेट में की़ड़े पड़ जाते हैं।

इतना सयानापन

आखिर कहां से आया?

सोचता हूं

क्या वाकई

बड़ी हो गई है

मेरी बिटिया?


उभर आती है

लकीरें चिन्ताओं की

मस्तक पर

क्योंकि

ल़ड़की के बड़े होने के

अहसास से

बड़ी नहीं कोई चिन्ता ।

आईने में

चेहरे की लकीरें

बता रही हैं

सचमुच

सयानी हो गई है

मेरी बिटिया ।
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संजय परसाई की एक कविता


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