1/12/2009

मंसूबा बेकार होगा



शहर में न अब कोई बीमार होगा,
नुस्खा-ए-उल्फत असरदार होगा ।



सिखाई है सबको उज़ाले की बातें,
वो दिल में यकीनन अंगार होगा ।


है फौलाद लेकिन् नज़रें झुकी हैं,
किसी राजधानी का दरबार होगा ।



तुम्हारी चमकदार रातों से कह दो,
सुबह पर हमारा ही अधिकार होगा ।

कफ़स में यूँ सूरज कब तक रखोगे,

तुम्हारा ये मंसूबा बेकार होगा ।

हमारे मुहल्ले में कल देखना तुम
दिलों से दिलों का सरोकार होगा ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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3 comments:

  1. तुम्हारी चमकदार रातों से कह दो,
    सुबह पर हमारा ही अधिकार होगा ।

    Sundar rchana....

    Badhai...

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  2. हमारे मुहल्ले में कल देखना तुम
    दिलों से दिलों का सरोकार होगा
    bahut sunder rachana

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  3. है फौलाद लेकिन् नज़रें झुकी हैं,
    किसी राजधानी का दरबार होगा ।
    लेकिन आज कल तो इस से उलटा हो रहा है जी, राजधानी का अदना सा नेता भी अकड कर चलता है.
    धन्यवाद

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