1/07/2009

रहजनों की भीड़ है



जो कोई गुज़रा यहां से डर गया,

पास ही मंज़िल थी लेकिन मर गया ।



एक पल सोचा कि मुश्किल आएगी,

और इतनी देर में अवसर गया ।



अब अमानत में खयानत तय समझ,

रहजनों की भीड़ है रहबर गया ।



चाहते थे दिल से अपना दिल मिले,

दूर से भी कोई ना छूकर गया।



शख्स जो बेखौफ़ था, बेलौस था,

छोड़कर मैदान अपने घर गया ।



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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल


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