जो कोई गुज़रा यहां से डर गया,
पास ही मंज़िल थी लेकिन मर गया ।
एक पल सोचा कि मुश्किल आएगी,
और इतनी देर में अवसर गया ।
अब अमानत में खयानत तय समझ,
रहजनों की भीड़ है रहबर गया ।
चाहते थे दिल से अपना दिल मिले,
दूर से भी कोई ना छूकर गया।
शख्स जो बेखौफ़ था, बेलौस था,
छोड़कर मैदान अपने घर गया ।
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डालें ।
No comments:
Post a Comment
अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.