सहर की बात दूजी है, न इसका कोई भी सानी ।
बदलते वक्त में बदली फिजाएँ और ये मौसम
न फूलों में रहीं खुशबू न सावन में कहीं पानी ।
हमारे घर भी कल रोटी बनेगी देखना बेटा,
जलेगा फिर वहीं चूल्हा जहाँ है आज वीरानी ।
रहेगी बस वही दुनिया, कहे जो प्यार की बानी ।
मुझे तुमसे शिकायत है जो यूँ खामोश बैठे हो,
उठाओ हाथ में पतवार रख दो चीरकर पानी।
सियासत के लिए कब तक करेंगे यूँ ही नादानी ।
-----
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डाले।
No comments:
Post a Comment
अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.