1/23/2009

हर कोई अब चीज है

दर्शनों के लाभ में उलझा यहाँ हर गाँव है,

हाथ हैं जोड़े हुए और बँध गया हर पाँव है।

इन बाज़ारी वायदों में तुम्हें उलझा दिया

हो गए बेखौफ़ अब वे फल गया हर दाव है ।

डूबते हैं हम कभी तो एक तिनका भी नहीं,

और उनके घूमने के वास्ते भी नाव है ।

देखिये आकाश में बारात तारों की सजी,

ज़मीं पर मेरी लगे अनगिनत से घाव हैं ।


नाम ना पहचान के काबिल रहा ‘आशीष’ यहाँ,

हर कोई अब चीज़ है हर किसी के भाव हैं ।


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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल


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1 comment:

  1. इस सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद

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