हाथ हैं जोड़े हुए और बँध गया हर पाँव है।
इन बाज़ारी वायदों में तुम्हें उलझा दिया
हो गए बेखौफ़ अब वे फल गया हर दाव है ।
डूबते हैं हम कभी तो एक तिनका भी नहीं,
और उनके घूमने के वास्ते भी नाव है ।
देखिये आकाश में बारात तारों की सजी,
ज़मीं पर मेरी लगे अनगिनत से घाव हैं ।
नाम ना पहचान के काबिल रहा ‘आशीष’ यहाँ,
हर कोई अब चीज़ है हर किसी के भाव हैं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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इस सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद
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