1/08/2009

शब्द का इक बाण







ना ही दिल छोटा करें और ना ही यूँ माने बुरा,

क्या करुँ लाचार हूँ बोले ही जाता हूँ खरा ।



आपकी दुनिया में तो खामोशियों का काम है,

मुँह जिसका भी खुला बेमौत समझो वो मरा ।



शब्द का इक बाण तरकश से कभी जो चल गया,

बात वर्षों है पुरानी, घाव अब तक है हरा।



आप लिखना चाहते हैं तो लिखें कुछ यूँ लिखें,

बात चाहे हो किसी की पर लगे अपनी ज़रा ।



बात करता हूँ कभी भी बैठकर इंसान की,

लोग कहते मूर्ख है या फिर कोई है सरफिरा।

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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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1 comment:

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