ना ही दिल छोटा करें और ना ही यूँ माने बुरा,
क्या करुँ लाचार हूँ बोले ही जाता हूँ खरा ।
आपकी दुनिया में तो खामोशियों का काम है,
मुँह जिसका भी खुला बेमौत समझो वो मरा ।
शब्द का इक बाण तरकश से कभी जो चल गया,
बात वर्षों है पुरानी, घाव अब तक है हरा।
आप लिखना चाहते हैं तो लिखें कुछ यूँ लिखें,
बात चाहे हो किसी की पर लगे अपनी ज़रा ।
बात करता हूँ कभी भी बैठकर इंसान की,
लोग कहते मूर्ख है या फिर कोई है सरफिरा।
-----
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी एक नजर डालें।
हमेशा की तरह लजवाव
ReplyDelete