1/27/2009

मतभेद तो चलते रहेंगे

इस नदी की काई को आओ हटाएँ,
मौन लहरों को चलो मिलकर बहाएँ ।

ठहरने को क्यों बनाएँ बेबसी,
रुक चुके कदमों को तेजी से बढ़ाएँ ।

नकारा इस जगत ने तो क्या हुआ,
क्यों न अपनी अलग ही दुनिया बसाएँ ?

आपसी मतभेद तो चलते रहेंगे
घर के मसलों को चलो मिलकर मिटाएँ ।

नफ़रतों के शोर पर ना ध्यान दें,
अमन के नग़मात घर-घर में सुनाएं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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1 comment:

  1. नफ़रतों के शोर पर ना ध्यान दें,
    अमन के नग़मात घर-घर में सुनाएं
    बिलकुल सही कहा आओ ने.
    धन्यवाद

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