मौन लहरों को चलो मिलकर बहाएँ ।
ठहरने को क्यों बनाएँ बेबसी,
रुक चुके कदमों को तेजी से बढ़ाएँ ।
नकारा इस जगत ने तो क्या हुआ,
क्यों न अपनी अलग ही दुनिया बसाएँ ?
आपसी मतभेद तो चलते रहेंगे
घर के मसलों को चलो मिलकर मिटाएँ ।
नफ़रतों के शोर पर ना ध्यान दें,
अमन के नग़मात घर-घर में सुनाएं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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नफ़रतों के शोर पर ना ध्यान दें,
ReplyDeleteअमन के नग़मात घर-घर में सुनाएं
बिलकुल सही कहा आओ ने.
धन्यवाद