1/25/2009

कोई तो काला चाहिए

या इबादतगाह या कोई शिवाला चाहिए,
किसी को न मुल्क में थोड़ा उजाला चाहिए ।

जिसके हाथों में सारे जगत की जान है,
फिर भला क्यूँ उसके दरवाजे पे ताला चाहिए ?

बम, धमाके, गोलियाँ, सब आप ही रखिये जनाब,
हमें तो अपने लिए बस इक निवाला चाहिए ।

श्वेत है तेरी पसन्द तो इतना भी तू याद रख,
इसकी अस्मत के लिए कोई तो काला चाहिए ।

मक्खियाँ बाज़ार में उड़ने लगी हैं हर तरफ,
अब तो इनको पकड़ने को कोई जाला चाहिए ।


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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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2 comments:

  1. बम, धमाके, गोलियाँ, सब आप ही रखिये जनाब,
    हमें तो अपने लिए बस इक निवाला चाहिए ।
    बहुत खुब,
    धन्यवाद

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  2. बेहतरीन कविता प्रस्तुत करने के लिये आप बधाई के पात्र हैं...

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