किसी को न मुल्क में थोड़ा उजाला चाहिए ।
जिसके हाथों में सारे जगत की जान है,
फिर भला क्यूँ उसके दरवाजे पे ताला चाहिए ?
बम, धमाके, गोलियाँ, सब आप ही रखिये जनाब,
हमें तो अपने लिए बस इक निवाला चाहिए ।
श्वेत है तेरी पसन्द तो इतना भी तू याद रख,
इसकी अस्मत के लिए कोई तो काला चाहिए ।
मक्खियाँ बाज़ार में उड़ने लगी हैं हर तरफ,
अब तो इनको पकड़ने को कोई जाला चाहिए ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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बम, धमाके, गोलियाँ, सब आप ही रखिये जनाब,
ReplyDeleteहमें तो अपने लिए बस इक निवाला चाहिए ।
बहुत खुब,
धन्यवाद
बेहतरीन कविता प्रस्तुत करने के लिये आप बधाई के पात्र हैं...
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