1/02/2009

मसरुफियत


।। मसरूफियत ।।


बच्चे अब नहीं दुबकते

माँ के आँचल में ।

बच्चे अब नहीं सुनते

कहानी अपनी नानी से ।

बच्चे अब नहीं माँगते

गुड़ धानी दादी से ।

बच्चे अब नहीं खेलते

कंचे या आँख मिचैली ।

बच्चे अब नहीं जानते

चैपाल पर होती थी रामलीला ।

बच्चे अब होमवर्क करते हैं

बच्चे अब बच्चे कहाँ रहे ।


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता

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1 comment:

  1. फ़िर से एक सुंदर रचना, सुंदर विचार, आप ने बिलकुल सही लिखा है अब बच्चे पहले वाले बच्चे नही रहे.
    धन्यवाद

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