।। मसरूफियत ।।
बच्चे अब नहीं दुबकते
माँ के आँचल में ।
बच्चे अब नहीं सुनते
कहानी अपनी नानी से ।
बच्चे अब नहीं माँगते
गुड़ धानी दादी से ।
बच्चे अब नहीं खेलते
कंचे या आँख मिचैली ।
बच्चे अब नहीं जानते
चैपाल पर होती थी रामलीला ।
बच्चे अब होमवर्क करते हैं
बच्चे अब बच्चे कहाँ रहे ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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फ़िर से एक सुंदर रचना, सुंदर विचार, आप ने बिलकुल सही लिखा है अब बच्चे पहले वाले बच्चे नही रहे.
ReplyDeleteधन्यवाद