देखें क्या-क्या कर पाता है सूरज नई सदी का,
तम को कितना हर पाता है सूरज नई सदी का ।
देख नज़रें थक बैठी है हर चेहरे की आंखें,
कितनी नज़रों को भाता है सूरज नई सदी का ।
गांवों की गलियों में मांगू आस लगाए बैठा,
क्या उसके भी घर जाता है सूरज नई सदी का ।
हर पल जो मरता रहता है उसके जीवन की खातिर,
कब-कब कितना मर पाता है सूरज नई सदी का ।
बीज फ़सादों के जितने भी बोए गई सदी ने,
उनमें क्या अन्तर लाता है सूरज नई सदी का ।
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आशीष दशोत्त ‘अंकुर’ की एक गजल
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गांवों की गलियों में मांगू आस लगाए बैठा,
ReplyDeleteक्या उसके भी घर जाता है सूरज नई सदी का ।
सभी को बहुत ऊमीद है इस सुरज से...
बहुत ही सुंदर कविता आप ने लिखी है, बहुत ही सुंदर भाव
धन्यवाद