1/26/2009

अब नहीं लिखता कोई प्यार भरी चिट्ठी

चिट्ठियों के बढ़ते भाव के साथ ही
कम होते जा रहे हैं
प्रेम, आत्मीयता
और अपनेपन के भाव।
आजकल हाय, हलो, कैसे हो?
के साथ ही हो जाती है बातें समाप्त।
न वो अपनापन, न स्नेह
और न वो ममत्व का भाव
क्योंकि ‘भाव’ ने ही घटा दिए,
भावनाओं के ‘भाव’।
अब पैसों तक सीमित रह गया है
प्यार और अपनापन ।
चिट्ठियों की मँहगाई ने बढ़ा दी है
दूरियाँ स्नेह की ।
अब नहीं लिखता
कोई प्यार भरी चिट्ठी
भाई, बहन, माँ या प्रेयसी के नाम ।
कम्बख्त टेलीफोन ने कर दिया है
करेले पर नीम का काम।
अब नहीं रहता पहले सा
डाकिए का इन्तजार।
सुबह-शाम समय से पहले ही
दौड़ जाती थी
दूर सड़क पर निगाहें
आता होगा डाकिया
लेकर सुख-दुख का गट्ठर
बगल में दबाए।
लेकिन अब रहती है
मात्र टेलीफोन पर निगाहें
समय की भागती रफ्तार से
काम पूर्ति बात और......और
फिर दूसरे फोन का इन्तजार ।
अब बहुत कम आता है
डाकिया मोहल्ले में।
क्योंकि अब वो ही
भावनाएँ दबी हैं उसके गट्ठर में
जो रह गई हैं टेलीफोन से वंचित
अब सुनाई नहीं देती
डाकिए की आवाज
सुनाई देती है केवल
जोर-जोर से माईक में
चीखने की आवाज
लो और....कम हो गए
टेलीफोन के भाव।
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संजय परसाई की एक कविता

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1 comment:

  1. गणतंत्र दिवस पर आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं

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