1/17/2009

पतवार अपने पास है



मैं अगर बोलूँगा सच मानेंगे उसको आप ना,

और उसके झूठ का करते हैं हँसकर सामना ।


पृष्ठ सारे आपके गुणगान से भरने लगे,

और अपना हाशिए में भी लिखा है नाम ना ।

हम बहाते ही रहे खूनो-पसीना एक सा,

कामना उनकी रही जिनका कहीं पर काम ना ।


नाव उनकी हो मग़र पतवार अपने पास है,

जानते हैं किस लहर को किस तरह से काटना ।


हाँ-जी, हाँ-जी करने वालों से घिरे हैं आजकल,

क्या करेंगे वे कभी इंसान का भी सामना ।

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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल


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2 comments:

  1. Bahut sundar rachna....
    Regards....

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  2. क्या करेंगे वे कभी इंसान का भी सामना ।
    बहुत ही सुंदर कविता. ओर एक कडवा सच,
    धन्यवाद

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