कायरों की शक्ल में ही ढल रहा है आदमी ।
मुस्कुराने की उसे आदत है वो मुस्काएगा
दिल ही दिल में किस कदर जल रहा है आदमी ।
वो कतारें नामालूम ले जाती है कहाँ,
नाक की ही सीध में चल रहा है आदमी ।
जानता है सब मग़र खामोश है इस तरह,
ना ही कोई प्रश्न ना ही हल रहा है आदमी ।
वायदों के जाल में फँस उलझ कर रह गया,
आज तो हर आदमी को छल रहा है आदमी ।
-----
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डालें।
===
वायदों के जाल में फँस उलझ कर रह गया,
ReplyDeleteआज तो हर आदमी को छल रहा है आदमी ।
-वाह आशीष जी!! उम्दा!!
खौफ़ के साये में जो पल रहा है आदमी,
ReplyDeleteकायरों की शक्ल में ही ढल रहा है आदमी ।
मुस्कुराने की उसे आदत है वो मुस्काएगा
दिल ही दिल में किस कदर जल रहा है आदमी ।
वाह वाह.....!!