तुम क्या गई
कर गई जीवन में अंधेरा
न तुम्हारे बिना चैन
न मन को राहत
बस तुम्हारे ही लौटने का
रहता है इन्तजार
क्योंकि तुम्हारे बगैर
नहीं बढ़ सकते हमारे कदम
तुम रहती हो / तो
रोशन रहता है
घर - आँगन
तुम्हारे बगैर
काटने को दौड़ती है
हँसी वादियाँ भी
तुम्हारे बगैर
बच्चे रहते है उदास
घर के बूढ़े भी
करते है तुम्हारी आस
तुम्हारे चले जाने से
मन का ही नहीं
घर का आँगन भी
सूना - सूना लगता है
लौट आओ जल्दी
अब नहीं सही
जाती
तुम्हारी जुदाई
तुम्हारा रुठना
बिगाड़ सकता है
बच्चों का भविष्य
क्योंकि/किसी को हो न हो
उन्हें जरुरत है तुम्हारी
हम तो गुजार लेंगे/अपनी रातें
छुटकी के साथ
लेकिन
बू़ढ़ी दादी की
जाती हुई आँखों की रोशनी को
तुम्हीं दे सकती हो सहारा
अब रुठना छोड़
लौट भी आओ
और कर दो रोशन
घर आँगन
बिजली रानी ।
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संजय परसाई की एक कविता
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वाकई इतने ही निर्भर हैं हम बिजली पर!
ReplyDeletekhusurt bhav,sunder rachana
ReplyDeleteलेकिन
ReplyDeleteबू़ढ़ी दादी की
जाती हुई आँखों की रोशनी को
तुम्हीं दे सकती हो सहारा
अब रुठना छोड़
लौट भी आओ
और कर दो रोशन
घर आँगन
बिजली रानी ।
सवेदनशील रचना दिल को छु गए आप