सिसकता ये शज़र देखो और कुछ करो,
उजड़ता ये शहर देखो और कुछ करो ।
भ्रष्टता के पैमाने यहाँ तय हो रहे,
शिष्टता पर कहर देखो और कुछ करो।
ज़िन्दगी का मूल्य कितना गिर चुका,
हाथ में हर ज़हर देखो और कुछ करो ।
दूध पहले - बाद पानी और अब तो खून है,
बदलती ये नहर देखो और कुछ करो ।
हर गली के मोड़ पर है खौफ की दादागिरी,
सिसकियाँ दरबदर देखो और कुछ करो।
-----
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डालें।
4/01/2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahot hi badhiya gazal... ankur ji ko badhaaee shayad ye gazal pahale bhi hamne padhi thi aapke hi blog pe.... sahi taur pe yaad nai aaraha magar achha asaar nikle hai...
ReplyDeletearsh
वाकई कुछ तो करना होगा। कहने का जमाना गया।
ReplyDelete