तो यक़ीनन मुस्कुराहट चाहिए ।
हाल कुछ बिगड़े हैं यारों इस तरह,
अम्न की हर रोज़ दावत चाहिए ।
कुछ शरीफों के तरह की बात हो,
खुद में भी तो कुछ शराफत चाहिए।
जंग लगता जा रहा इस तन्त्र में,
हल यही है इक बगावत चाहिए ।
गुलिस्ताँ महकाने के लिए ‘आशीष’
नौ- शगुफ्ता फूल सी निक्हत चाहिए।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डालें।
जंग लगता जा रहा इस तन्त्र में,
ReplyDeleteहल यही है इक बगावत चाहिए ।..
सही बात है...विचार बदलने ज़रूरी हैं.
जंग लगता जा रहा इस तन्त्र में,
ReplyDeleteहल यही है इक बगावत चाहिए।
अच्छी पँक्तियाँ हैं।
तंत्र के हालात बदले कोशिशें जारी रहे।
हर कदम हों साथ कैसे इक इबादत चाहिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बगावत तो करनी पड़ती है, चाहने वालों को ही।
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है आशीष जी ने।
ReplyDeleteज़िन्दगी में ग़र शरारत चाहिए,
ReplyDeleteतो यक़ीनन मुस्कुराहट चाहिए
सुना था शरारत से मुस्कुराहट आती है ..अब जमाना बदल गया है....बहोत खूब .....!!
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
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