4/22/2009

चाँद पर कर चहलकदमी

मत कर अब ईमान की बातें,
यहाँ पर इंसान की बातें ।

कुर्सियों का दौर है यह,
याद रख मतदान की बातें ।

आँसुओं के इस शहर में,
व्यर्थ है मुस्कान की बातें ।

दिल में ही जब जगह नहीं,
कैसे हो मेहमान की बातें ।

चाँद पर कर चहलकदमी,
भूल जा मैदान की बातें ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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