यहाँ पर इंसान की बातें ।
कुर्सियों का दौर है यह,
याद रख मतदान की बातें ।
आँसुओं के इस शहर में,
व्यर्थ है मुस्कान की बातें ।
दिल में ही जब जगह नहीं,
कैसे हो मेहमान की बातें ।
चाँद पर कर चहलकदमी,
भूल जा मैदान की बातें ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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