आसुओं की नदियाँ
बहाई मैंने
और/देर तक
सिसकता रहा मैं
फिर
दो नर्म/नाजुक हाथ
मेरी ओर ब़ढ़े
आँसू पोंछे
और/एकदम
सीने से लगा लिया
देर तक
सीने से लिपटाकर रखा
शायद वह
मेरे रोने/बिलखने के मर्म को
समझ चुके थे
और कुछ समय पश्चात
मैं पुनः पहले सा
खिलखिला रहा था
क्योंकि
मुझे मेरी माँ से
वो अमृत मिल चुका था
जो मेरी भूख/और
रोने का कारण था ।
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संजय परसाई की एक कविता
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बहुत ही उम्दा बधाई.
ReplyDeleteअच्छी लघु कविता है, बधाइ परसाई जी को
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