4/18/2009

अमृत

देर तक
आसुओं की नदियाँ
बहाई मैंने
और/देर तक
सिसकता रहा मैं


फिर
दो नर्म/नाजुक हाथ
मेरी ओर ब़ढ़े
आँसू पोंछे
और/एकदम
सीने से लगा लिया
देर तक
सीने से लिपटाकर रखा

शायद वह
मेरे रोने/बिलखने के मर्म को
समझ चुके थे

और कुछ समय पश्चात
मैं पुनः पहले सा
खिलखिला रहा था

क्योंकि
मुझे मेरी माँ से
वो अमृत मिल चुका था
जो मेरी भूख/और
रोने का कारण था ।
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संजय परसाई की एक कविता


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2 comments:

  1. अच्‍छी लघु कविता है, बधाइ परसाई जी को

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