जोकर बन जाना
ताकि लोगो को हँसा सकूँ
उनके गम बाँट सकूँ
और दुःखों का साथी बन जाऊँ
कुछ समय के लिए
ऐसे दुःखों का साथी
जो दुःख नहीं, खुशी दे सकें
कुछ क्षणों के लिए
भीषण तपन में मावठे सी।
लेकिन
आसान नहीं है जोकर बनना
हजारों में एक ही बन पाता है जोकर
क्योंकि
अपना कुछ नहीं होता जोकर के पास
उसकी हँसी ठिठोली
रोना-कूदना-उछलना
सब दूसरों के लिए है
सोचता हूँ
क्या, दे पाऊँगा दूसरों को?
बाँट पाऊँगा उनके गम?
बढ़ा पाऊँगा
उनकी खुशी?
अन्तर्मन ने बार-बार कचोटा
शायद नहीं ....
शायद नहीं ....
शायद कभी नहीं ....।
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संजय परसाई की एक कविता
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दूसरो को खुशी देना।बहुत मुश्किल काम है।अच्छी रचना प्रेषित की है।बधाई।
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