खूनो-खंजर और धमाल देखिये ।
विक्षिप्त मानसिकता का दौर है यह,
बुझा-बुझा हर खयाल देखिये ।
गधे -घोड़े सभी जमे हैं कुर्सी पर,
वक्त का कलियुगी कमाल देखिये ।
रहनुमा जब राहजन बन गए हैं,
मिसालों में ऐसी मिसाल देखिए ।
व्यर्थ की बातों में दबा पड़ा है,
मेरा वो अहम् सवाल देखिये ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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इस सवाल को बाहर निकालिए।
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteआप लिखते रहें।