ज़िन्दगी का नाम रोटी ।
आप खाओ हलवा-पूरी,
अपना घी- बादाम रोटी ।
भूख ने कहा ऐ कासिद,
है मेरा पैग़ाम रोटी ।
बिलखते इन मासूमों की,
सिर्फ इक मुस्कान रोटी ।
गरीबों की झोंपड़ी में,
है बहुत सम्मान रोटी ।
अल्ला-रामा सभी झूठे,
गीता और कुरआन रोटी।
लगे है आसान ‘आशीष’
नहीं है आसान रोटी ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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बहुत खूब।
ReplyDeleteमजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत।
रोटी बड़ी या मजहब हमको जरा बताना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
धधकती रचना।
ReplyDeleteबिलखते इन मासूमों की,
ReplyDeleteसिर्फ इक मुस्कान रोटी ।
गरीबों की झोंपड़ी में,
है बहुत सम्मान रोटी ।
bahut sahi farmaya sunder gazal