करनी पड़ेगी आज इबादत सुकून की।
चैनो-अमन का पाठ ही पढ़ते रहो सदा,
लिखते रहो दिन-रात इबारत सुकून की ।
हर कदम बढ़ाने से पहले ही सोच लो,
चलने से पहले ले लो इजाज़त सुकून की ।
मेल और मिलाप की मिट्टी को जोड़कर
खड़ी करो मजबूत इमारत सुकून की ।
यह दौरे-मुसीबत गुज़र जाएगा यूँ ही
होगी कभी तो हम पे इनायत सुकून की ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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सुकून की इनायत का इंतज़ार हम भी कर रहे हैं,बहुत बढिया लिखा आपने।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व सही लिखा है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती