पसीना बहाता
तन पर फटे कपड़े
और दिल में
रोटी की आस लिए
भविष्य से लड़ता
उम्मीद से झगड़ता
भाग्य को कोसता
तिल-तिल जलता
वह मजदूर
काश !
कोई समझता
वह केवल
एक मजदूर नहीं
उसका भी दिल है
कल्पना है आरजू है
और इन सभी से दूर
और इन सबसे पहले
वह एक मानव है ।
===
संजय परसाई की एक कविता
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डालें।
मजदूरों के दर्द को रचना में स्थान।
ReplyDeleteसत्ताधारी लोग भी रखते इसका ध्यान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com:
भविष्य से लड़ता
ReplyDeleteउम्मीद से झगड़ता