4/15/2009

वह एक मानव है

चिलचिलाती धूप में
पसीना बहाता
तन पर फटे कपड़े
और दिल में
रोटी की आस लिए
भविष्य से लड़ता
उम्मीद से झगड़ता
भाग्य को कोसता
तिल-तिल जलता
वह मजदूर

काश !
कोई समझता
वह केवल
एक मजदूर नहीं

उसका भी दिल है
कल्पना है आरजू है

और इन सभी से दूर
और इन सबसे पहले
वह एक मानव है ।
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संजय परसाई की एक कविता



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2 comments:

  1. मजदूरों के दर्द को रचना में स्थान।
    सत्ताधारी लोग भी रखते इसका ध्यान।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com:

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  2. भविष्य से लड़ता
    उम्मीद से झगड़ता

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