कि बदल दोगे
दुनिया का नक्शा
कर लोगे दुनिया पर हुकूमत
लेकिन तुमने सोचा है कभी
कि एक नन्हा सा दीया
देता है अँधेरे को चुनौती
क्यों?
क्योंकि है उसमें आत्मविश्वास
अँधेरे को मात कर देने का
नहीं समझता वो अपने को छोटा
तभी तो
नन्हीं सी बाती को तलवार बना
भिड़ जाता है अँधेरे से
और
आत्मविश्वास की लौ से
करता है रोशन
बस्तियों को
और तुम सोचते हो/कि
बदल दोगे दुनिया का नक्शा
तो अँधेरा कायम रखने का
तुम्हारा ये ख्वाब कभी पूरा नहीं होगा
क्योंकि ऐसे कई दीपक
खड़े हैं तुम्हारी राह में
जो आत्मविश्वास की रोशनी से
कर देंगे अँधेरे का सर्वनाश
और तुम्हारे मन्सूबों को ध्वस्त
अब भी समय है .....
सम्भल जाओ
या फिर खड़े रहो
अपने अस्तित्व के
समाप्त होने तक।
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संजय परसाई की एक कविता
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विश्वास भरी कविता!
ReplyDelete"अब भी समय है .....
ReplyDeleteसम्भल जाओ
या फिर खड़े रहो
अपने अस्तित्व के
समाप्त होने तक।"
कविता में चेतना का सन्देश।
बधाई स्वीकार करें।
आत्मविश्वास माने विजय.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव।बहुत बढिया रचना।बधाई स्वीकारें।
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