4/11/2009

शोक गीत

बेटी तुमने ज़हर खा लिया
अच्छा नहीं किया

ख़्वाब में भी नहीं सोचा था
तू इतनी जल्दी हार जायेगी

बहुत जल्दी कर गई तू

सत्रह-अठारह साल की उम्र में
क्या समझा दुनिया को

बड़ी होती, समझ पैदा करती
दुनिया के षड़यन्त्रों को समझती
कोई तोड़ निकालती

वैसे तमाम औरतें पीती हैं
ज़हर आहिस्ता - आहिस्ता
पर खड़ी रहती हैं
अग्निस्तम्भ की तरह
उफनते दहाड़ते समुद्रों में

और समय आने पर फोड़ देती है
पृथ्वी का खोल

औरत के हिस्से
केवल गलाज़त नहीं
वह अपना हक़ माँगती है
वसन्त के फूलों पर भी

वह केवल घरों में सजा
गुलदान नहीं
दीमक खाया काठ का टुकड़ा नहीं

एक पूरा जंगल है हरहराता हुआ

इन सब चीज़ों को समझती तो सही
लोगों से मिलती, बात करती

ज़हर खा कर अच्छा नहीं किया बेटी तूने
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रचना दिनांक 31 जुलाई’ 98

रतन चौहान : 6 जुलाई 1945, गाँव इटावा खुर्द, रतलाम, मध्य प्रदेश में एक किसान परिवार में जन्म।
अंग्रेज़ी और हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि।
प्रकाशित कृतियाँ - (कविता संग्रह हिन्दी) : अंधेरे के कटते पंख, टहनियों से झाँकती किरणें।
(कविता संग्रह, अंग्रेजी) : रिवर्स केम टू माई डोअर, ‘बिफोर द लिव्ज़ टर्न पेल’, लेपर्डस एण्ड अदर पोएम्ज़।
हिन्दी से अंग्रेजी में पुस्तकाकार अनुवाद : नो सूनर, गुड बाई डिअर फ्रेन्ड्स, पोएट्री आव द पीपल, ए रेड रेड रोज़, तथा ‘सांग आव द मेन’। देश-विदेश की पत्रिकाओं में अनुवाद प्रकाशित ।
साक्षात्कार, कलम, कंक, नया पथ, अभिव्यक्ति, इबारत, वसुधा, कथन, उद्भावना, कृति ओर आदि पत्रिकाओं में मूल रचनाओं के प्रकाशन के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका, यूरोप एवं रुस के रचनाकारों का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद।
इण्डियन वर्स, इण्डियन लिटरेचर, आर्ट एण्ड पोएट्री टुडे, मिथ्स एण्ड लेजन्ड्स, सेज़, टालेमी आदि में हिन्दी के महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद।
एण्टन चेखव की कहानी ‘द ब्राइड’ और प्रख्यात कवि-समीक्षक-अनुवादक श्री विष्णु खरे की कविता ‘गुंग महल’ का नाट्य रूपान्तर। ‘हिन्दुस्तान’ और ‘पहचान’ अन्य नाट्य कृतियाँ।
अंग्रेज़ी और हिन्दी साहित्य पर समीक्षात्मक आलेख।
जन आन्दोलनों में सक्रिय।
सम्प्रति - शासकीय स्नातकोत्तर कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, रतलाम में अंग्रेजी के प्राध्यापक पद से सेवा निवृत।
सम्पर्क : 6, कस्तूरबा नगर, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001. दूरभाष - 07412 264124


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3 comments:

  1. कविता अच्छी है, पर बहुत सपाट है।

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  2. पैदा हुई तो बेटी हो गई
    बड़ी हुई तो बहन हो गई
    ब्हायी गई तो पत्नी हो गई
    घर की लक्ष्मी हो गई
    फिर सौभाग्यवती हो गई
    क्यों कि मैंने ओढ़ ली जिम्मेवारियों की चुनरी
    इन सब में मैं कहां थी?
    इसका जवाब खोजना चाहा तो
    न बेटी-बहन रही न पत्नी रही
    न सौभाग्यवती रही
    न घर की लक्ष्मी रही
    स्वयं को खोजने का हक नहीं है मुझे?

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  3. बहुत सीधी से बात कहने वाली कविता

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