फिर सारे हालात बदलिये ।
दिन जब दिन सा हो जाए तो,
सारी-सारी रात बदलिये ।
उनके पैर सने दिखते हैं,
खुद की तो औक़ात बदलिये ?
ग़म में भी खुशियाँ ही बिखरे,
अ़श्क़ों की बारात बदलिये ।
दम है खुद में तो, डर कैसा?
ये भीख, ख़ैरात बदलिये ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डालें।
बदल रहे हैं लोग भी बदल रहा संसार।
ReplyDeleteबदलेंगे हालात भी बदले अगर विचार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
waah bahut khub
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