4/12/2009

हर रात स्वप्न में

हर रात स्वप्न में
एक नदी उम़ड़ती है
अनन्त दिशाओं/मार्गों को
पार करती हुई/और
वहीं मु़ड़ जाती है
जहाँ तुम्हारा वास है ।

हर रात स्वप्न में
दिखाई दे जाती है
मुस्कुराती/खिलखिलाती
तुम्हारी सूरत
जिसे देखने को
तड़पता रहता हूँ
दिन में ।

हर रात स्वप्न में
दिखाई दे जाती हैं
तुम्हारी नम आंखें
जो हर पल
कुछ कहने को
रहती हैं आतुर ।

हर रात स्वप्न में
चुपके से
आ जाती हो तुम
कर जाती हो मीठी बातें
और दे जाती हो सम्बल
तुम्हें पाने के अटूट विश्वास को।
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संजय परसाई की एक कविता

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2 comments:

  1. जो दिन में नहीं मिलता वह सब स्वप्न में मिल जाता है। शायद इसीलिए स्वप्न इतने मोहक होते हैं।
    घुघूती बासूती

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  2. बहुत भावपूर्ण रचना प्रेषित की है।बधाई।

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