4/19/2009

इक बगावत चाहिए

ज़िन्दगी में ग़र शरारत चाहिए,
तो यक़ीनन मुस्कुराहट चाहिए ।

हाल कुछ बिगड़े हैं यारों इस तरह,
अम्न की हर रोज़ दावत चाहिए ।

कुछ शरीफों के तरह की बात हो,
खुद में भी तो कुछ शराफत चाहिए।

जंग लगता जा रहा इस तन्त्र में,
हल यही है इक बगावत चाहिए ।

गुलिस्ताँ महकाने के लिए ‘आशीष’
नौ- शगुफ्ता फूल सी निक्हत चाहिए।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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6 comments:

  1. जंग लगता जा रहा इस तन्त्र में,
    हल यही है इक बगावत चाहिए ।..
    सही बात है...विचार बदलने ज़रूरी हैं.

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  2. जंग लगता जा रहा इस तन्त्र में,
    हल यही है इक बगावत चाहिए।

    अच्छी पँक्तियाँ हैं।

    तंत्र के हालात बदले कोशिशें जारी रहे।
    हर कदम हों साथ कैसे इक इबादत चाहिए।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. बगावत तो करनी पड़ती है, चाहने वालों को ही।

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  4. बहुत बढिया लिखा है आशीष जी ने।

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  5. ज़िन्दगी में ग़र शरारत चाहिए,
    तो यक़ीनन मुस्कुराहट चाहिए

    सुना था शरारत से मुस्कुराहट आती है ..अब जमाना बदल गया है....बहोत खूब .....!!

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  6. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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