दिल तभी है शायराना जानते हैं ।
तुम दिलों की दूरियॉं ही देखते हो,
हम दिलों को पास लाना जानते हैं ।
इस मकाँ से जो चले गए हैं उठकर,
उनको हम फिर से बुलाना जानते हैं ।
रकीबों के बीच बैठे हैं मग़र,
गीत उल्फ़त के सुनाना जानते हैं ।
आए ना ‘आशीष’ हमारी महफिलों में,
आपका हर इक बहाना जानते हैं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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रकीबों के बीच बैठे हैं मग़र,
ReplyDeleteगीत उल्फ़त के सुनाना जानते हैं ।
-बढ़िया है आशीष जी.
aasheesh ji bahut hi behtreen
ReplyDeleteएक अच्छी ग़ज़ल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छी गज़ल है ...बहुत-२ बधाई...
ReplyDeleteतुम दिलों की दूरियॉं ही देखते हो,
ReplyDeleteहम दिलों को पास लाना जानते हैं ।
बेहतरीन...वाह.
नीरज
waah behad sunder
ReplyDeleteअच्छी गजल है। बधाई।
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