3/16/2009

जानते हैं

आज है मौसम सुहाना जानते हैं,
दिल तभी है शायराना जानते हैं ।

तुम दिलों की दूरियॉं ही देखते हो,
हम दिलों को पास लाना जानते हैं ।

इस मकाँ से जो चले गए हैं उठकर,
उनको हम फिर से बुलाना जानते हैं ।

रकीबों के बीच बैठे हैं मग़र,
गीत उल्फ़त के सुनाना जानते हैं ।

आए ना ‘आशीष’ हमारी महफिलों में,
आपका हर इक बहाना जानते हैं ।

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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल


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7 comments:

  1. रकीबों के बीच बैठे हैं मग़र,
    गीत उल्फ़त के सुनाना जानते हैं ।

    -बढ़िया है आशीष जी.

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  2. एक अच्छी ग़ज़ल पढ़वाने के लिए धन्यवाद

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  3. बहुत अच्छी गज़ल है ...बहुत-२ बधाई...

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  4. तुम दिलों की दूरियॉं ही देखते हो,
    हम दिलों को पास लाना जानते हैं ।
    बेहतरीन...वाह.
    नीरज

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  5. अच्छी गजल है। बधाई।

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