3/26/2009

आँसू

मायूसी के क्षणों में
आ जाते है
सच्चे हमदम बन

गालों पर लुढ़क
सहलाते
गम को बाँटने का
प्रयास करते,

जब छोड़ देते
सब साथ
तो बिन बुलाए
आ जाते
मेरे गम को / सहेजने, समेटने
सच्चे साथी का
फर्ज निभाने
आँसू !
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संजय परसाई की एक कविता

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1 comment:

  1. मायूसी के क्षणों में
    आ जाते है
    सच्चे हमदम बन
    bahut sachcha likha hai

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