आ जाते है
सच्चे हमदम बन
गालों पर लुढ़क
सहलाते
गम को बाँटने का
प्रयास करते,
जब छोड़ देते
सब साथ
तो बिन बुलाए
आ जाते
मेरे गम को / सहेजने, समेटने
सच्चे साथी का
फर्ज निभाने
आँसू !
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संजय परसाई की एक कविता
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मायूसी के क्षणों में
ReplyDeleteआ जाते है
सच्चे हमदम बन
bahut sachcha likha hai