परिस्थितियाँ बदलीं
लेकिन / लगता है
सब कुछ पहले सा है
आज भी
सत्तू / जिसकी हो चुकी शादी
और दो बच्चे भी
भटक रहा है
काम की तलाश में
आज भी
प्रो. चौहान / हो गए उस वृक्ष की मानिन्द
जो बड़ा होने के बाद झुक जाता है
और / फलों के साथ देता है छाया
पहले से मृदु और ‘सरल’
आज भी ।
प्रवीण / अकेले ही झेल रहा
जिन्दगी के थपेड़े
उस नाव की मानिन्द
जो फँस गई भीषण तूफान में
फिर भी खे रहा है
जीवन की नैया
आज भी ।
दीपक / जिसकी प्रतिपल हो रही
रोशनी मद्धिम
कर रहा है संघर्ष
तूफानी हवाओं से
आज भी ।
बापू / धका रहे जीवन की गाड़ी
सत्तर की स्पीड में
बेटे का बोझ काँधों पर लिए
एक जो नहीं रहा
एक जो होकर भी, है नहीं
आज भी ।
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संजय परसाई की एक कविता
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आज होली पर इतनी गंभीर रचना??
ReplyDelete-आपको होली की मुकारबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल
प्रसंशनीय रचना !!!!
ReplyDeleteअमूल्य रचना, आप को होली की बहुत बहुत बधाई
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