3/11/2009

आज भी

समय बदला
परिस्थितियाँ बदलीं
लेकिन / लगता है
सब कुछ पहले सा है
आज भी

सत्तू / जिसकी हो चुकी शादी
और दो बच्चे भी
भटक रहा है
काम की तलाश में
आज भी

प्रो. चौहान / हो गए उस वृक्ष की मानिन्द
जो बड़ा होने के बाद झुक जाता है
और / फलों के साथ देता है छाया
पहले से मृदु और ‘सरल’
आज भी ।

प्रवीण / अकेले ही झेल रहा
जिन्दगी के थपेड़े
उस नाव की मानिन्द
जो फँस गई भीषण तूफान में
फिर भी खे रहा है

जीवन की नैया
आज भी ।

दीपक / जिसकी प्रतिपल हो रही
रोशनी मद्धिम
कर रहा है संघर्ष
तूफानी हवाओं से
आज भी ।

बापू / धका रहे जीवन की गाड़ी
सत्तर की स्पीड में
बेटे का बोझ काँधों पर लिए
एक जो नहीं रहा
एक जो होकर भी, है नहीं
आज भी ।


-----



संजय परसाई की एक कविता

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001


कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डाले।

3 comments:

  1. आज होली पर इतनी गंभीर रचना??


    -आपको होली की मुकारबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
    सादर
    समीर लाल

    ReplyDelete
  2. प्रसंशनीय रचना !!!!

    ReplyDelete
  3. अमूल्य रचना, आप को होली की बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete

अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.