मुसीबत में जान, आओ कुछ करें ।
एक भी होता शज़र तो ठीक था,
सामने मैदान आओ कुछ करें ।
बात होठों पर कोई आती नहीं,
दिल में इक तूफान आओ कुछ करें ।
सत्य अंधियारे में दम है तोड़ता,
झूठ सरेआम आओ कुछ करें ।
साज़िशों के बीच ‘आशीष’ है नहीं,
खो गया इंसान आओ कुछ करें ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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बहुत सही बात कही है सून्दर प्रयास।
ReplyDeleteKHUBSURAT KHAYAAL KE SAATH KAHI GAI GAZAL HAMESHAA HI KHUBSURAT AUR UMDA BAN PADATI HAI... KAHAN ACHHE HAI... BADHAAEE
ReplyDeleteARSH
सत्य अंधियारे में दम है तोड़ता,
ReplyDeleteझूठ सरेआम आओ कुछ करें ।
साज़िशों के बीच ‘आशीष’ है नहीं,
खो गया इंसान आओ कुछ करें ।
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वाह बहुत खूब ।
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