3/28/2009

आओ कुछ करें

रास्ता सुनसान, आओ कुछ करें,
मुसीबत में जान, आओ कुछ करें ।

एक भी होता शज़र तो ठीक था,
सामने मैदान आओ कुछ करें ।

बात होठों पर कोई आती नहीं,
दिल में इक तूफान आओ कुछ करें ।

सत्य अंधियारे में दम है तोड़ता,
झूठ सरेआम आओ कुछ करें ।

साज़िशों के बीच ‘आशीष’ है नहीं,
खो गया इंसान आओ कुछ करें ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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4 comments:

  1. बहुत सही बात कही है सून्दर प्रयास।

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  2. KHUBSURAT KHAYAAL KE SAATH KAHI GAI GAZAL HAMESHAA HI KHUBSURAT AUR UMDA BAN PADATI HAI... KAHAN ACHHE HAI... BADHAAEE

    ARSH

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  3. सत्य अंधियारे में दम है तोड़ता,
    झूठ सरेआम आओ कुछ करें ।

    साज़िशों के बीच ‘आशीष’ है नहीं,
    खो गया इंसान आओ कुछ करें ।
    -----
    वाह बहुत खूब ।

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