ऱफ्ता-ऱफ्ता फासले घटे
और दिल की बात हो गई,
उनसे अपनी ख़्वाब में सही
आज मुलाकात हो गई।
एक बुत को सामने रखा
और उसको दी है दुआ,
यूँ ही बीते अपने सारे दिन
और यूँ ही रात हो गई ।
ज़िन्दगी में ऩज्म वो बनी
और बन गई कभी ग़ज़ल,
वो बनी ज़मीं-औ' आसमाँ
वो ही कायनात हो गई ।
उसको अपने साथ क्या लिया
और ज़रा देर ही चला,
इस फिज़ाँ में आ गई बहार,
प्यार की बरसात हो गई ।
हर कदम पै’ रास्ते मिले तो
लगा कि और कुछ चलें,
चलते-चलते यूँ ही एक दिन
मंज़िलों से बात हो गई ।
-----
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akpham.blogspot.com भी नजर डाले।
3/03/2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आशीष जी की रचना पढ़वाने का आभार:
ReplyDeleteएक बुत को सामने रखा
और उसको दी है दुआ,
यूँ ही बीते अपने सारे दिन
और यूँ ही रात हो गई ।
-बहुत बढ़िया.
हर कदम पै’ रास्ते मिले तो
ReplyDeleteलगा कि और कुछ चलें,
चलते-चलते यूँ ही एक दिन
मंज़िलों से बात हो गई ।
बहुत ही सुंदर गजल...
आप का ओर आशीष जी का धन्यवाद