3/19/2009

दुनिया सयानी बन गई

ज़िन्दगी की हर फिज़ा जब से सुहानी बन गई,
इस जहाँ की हर अदा बस जाफरानी बन गई ।

आदतन हमने सफर को हर समय जारी रखा,
रहगुज़र वो आज मंज़िल की निशानी बन गई ।

कल किसी के कत्ल का चर्चा रहा अखबार में,
आज तो वो बात जैसे इक कहानी बन गई ।

देखकर बेमानियाँ भी आदमी खामोश है,
ज़िस्म ठण्डा हो गया कैसी रवानी बन गई ?

आदमी को खोजने में हम जरा मसरुफ़ थे,
बस इसी दौरान ही दुनिया सयानी बन गई ।

आसमाँ के पर किसी ने काटकर बिखरा दिए,
उन परिन्दों की उड़ानें अब कहानी बन गई ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल


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2 comments:

  1. माननीय महोदय
    सादर अभिवादन
    आपके ब्लाग की प्रस्तुति ने अत्यधिक प्रभावित किया। पत्रिकाओं की समीक्षा पढ़ने के लिए मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारें।
    अखिलेश शुक्ल
    संपादक कथाचक्र
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  2. आदमी को खोजने में हम जरा मसरुफ़ थे,
    बस इसी दौरान ही दुनिया सयानी बन गई ।
    बहुत ही सुंदर...
    धन्यवाद

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