3/06/2009

मौसम

आज कितना है सुहाना मौसम,
यूँ तो जीने का बहाना मौसम ।

वो हक़ीकत भी मौसम ही था,
और अब देखो फ़साना मौसम ।

तुम तो जाने कहाँ बहते ही रहे,
एक कतरा भी बहा ना मौसम ।

है फसल की कशिश, फूल की भी,
पेड़-पौधों का तराना मौसम ।

आज देखा जो पीछे मुड़कर,
याद आया है पुराना मौसम ।

नफ़रती दौर में ‘आशीष’ चुप है,
दीप उल्फ़त के जलाना मौसम ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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