यूँ तो जीने का बहाना मौसम ।
वो हक़ीकत भी मौसम ही था,
और अब देखो फ़साना मौसम ।
तुम तो जाने कहाँ बहते ही रहे,
एक कतरा भी बहा ना मौसम ।
है फसल की कशिश, फूल की भी,
पेड़-पौधों का तराना मौसम ।
आज देखा जो पीछे मुड़कर,
याद आया है पुराना मौसम ।
नफ़रती दौर में ‘आशीष’ चुप है,
दीप उल्फ़त के जलाना मौसम ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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बेहतरीन आशीष जी.
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया रचना बधाई
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