3/25/2009

प्यार से बेहतर नहीं कुछ

वक्त़ के हर मोड़ पर हम मुस्कुरा कर देख लें ,
ज़िन्दगी के गीत को यूँ गुनगुना कर देख लें ।

एक इंसानी बनाएँ क़ौम मिलकर साथ में,
ईद-होली और दिवाली को मिलाकर देख लें ।

तेरा-मेरा, इसका-उसका, क्या-कहाँ रह जाएगा,
इस नजर से इन गुबारों को हटा कर देख लें ।

फ़ासले जो बढ़ रहे हैं आज अपने दरमियाँ,
इन दिलों को आज तो नज़दीक लाकर देख लें ।

प्यार से बेहतर कभी कुछ हो नहीं सकता यहां,
प्यार का पैग़ाम ही सबको सुनाकर देख लें ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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3 comments:

  1. वाह !! सर्वजन हिताय के भाव लिए सुन्दर सन्देश देती बहुत ही सुन्दर रचना...

    आभार आपका.

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