3/23/2009

आग

एकटक निहार रही थी
वह पेड़ की झूलती
डालियों को
न कडकड़ाती धूप
की चिन्ता
न हवा की
बस निगाहें टिकी थीं
उस झूलती डाली
के साथ
झूलते आम पर
जो हवा के तेज
झोंके के साथ टपक प़ड़ेगा
जमीन पर
और वह बुझा लेगी
अपनी पेट की आग।
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संजय परसाई की एक कविता

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1 comment:

  1. झूलते आम पर
    जो हवा के तेज
    झोंके के साथ टपक प़ड़ेगा
    जमीन पर
    और वह बुझा लेगी
    अपनी पेट की आग।
    बहुत ही सुंदर.
    धन्यवाद

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