वह पेड़ की झूलती
डालियों को
न कडकड़ाती धूप
की चिन्ता
न हवा की
बस निगाहें टिकी थीं
उस झूलती डाली
के साथ
झूलते आम पर
जो हवा के तेज
झोंके के साथ टपक प़ड़ेगा
जमीन पर
और वह बुझा लेगी
अपनी पेट की आग।
===
===
संजय परसाई की एक कविता
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डाले।
झूलते आम पर
ReplyDeleteजो हवा के तेज
झोंके के साथ टपक प़ड़ेगा
जमीन पर
और वह बुझा लेगी
अपनी पेट की आग।
बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद