3/20/2009

दादाजी की छड़ी

कोने में खड़ी दादाजी की छड़ी
आज भी अहसास दिलाती है
उनके आसपास होने का

दुःख में सदैव उनके करीब
उनकी सच्ची हमदर्द रही
और
चलते फिरते समय
हमारे काँधे का प्रतीक
कभी दादाजी को संभालने वाली छड़ी
उनसे अलग होने का
अहसास नहीं होने देती

आज नौ वर्षों बाद भी
दादाजी के होने के अहसास को
संभाले खड़ी है कोने में

आज भी निभा रही
अपना धर्म
और / दाग रही है एक मूक प्रश्न
हमारे फर्ज को लेकर
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संजय परसाई की एक कविता

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4 comments:

  1. बहुत बढ़िया लगी कविता मन को छु गई . धन्यवाद.

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  2. बहुत बढ़िया कविता | हमें भी दादा जी की याद ताजा करवा दी |

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  3. अपनों से भी अधिक अपनी है दादाजी की छड़ी!

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  4. बहुत प्यारी लगी यह दादा जी की छडी,
    धन्यवाद

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