यह दुनिया एक दिन
जैसे खत्म हुई दूरियां
भाषा का कोष भी रीत जाएगा
जैसे नहीं रहेंगे
तुम्हारे खेत तुम्हारे
जैसे नहीं रहेंगे तुम्हारे
डांगर तुम्हारे
जैसे नहीं रहेंगे
तुम्हारे अपने तुम्हारे
जैसे नहीं रहेंगे तुम्हारे
सपने तुम्हारे
मिताक्षरा बन जाएगी
यह दुनिया एक दिन
लेकिन वह अक्षर
श्वेत दुनिया का होगा या स्याह दुनिया का
यह फैसला तो अभी बाकी है
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प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता
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लेकिन वह अक्षर
ReplyDeleteश्वेत दुनिया का होगा या स्याह दुनिया का
यह फैसला तो अभी बाकी है
बिलकुल सही कहा विष्णु बैरागी जी.
धन्यवाद