3/08/2009

अपनापन

उस दिन
खूब जमकर रोया था 'प्रसन्न'
स्कूल न जाने के लिए

शायद दो दिन पूर्व का
उसका उत्साह
ठण्डा पड़ गया था,

वह नहीं छोड़ना चाहता था
दादा - दादी व पापा - मम्मी
और नन्हीं गुड़िया ‘प्रतीक्षा’ को।

शायद
अपनापन दबा रहा था
उसके उत्साह को


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संजय परसाई की एक कविता



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2 comments:

  1. वाह, यही तो मोह है..
    धन्यवाद


    आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीनी भीनी सी बधाई।
    बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

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