खूब जमकर रोया था 'प्रसन्न'
स्कूल न जाने के लिए
शायद दो दिन पूर्व का
उसका उत्साह
ठण्डा पड़ गया था,
वह नहीं छोड़ना चाहता था
दादा - दादी व पापा - मम्मी
और नन्हीं गुड़िया ‘प्रतीक्षा’ को।
शायद
अपनापन दबा रहा था
उसके उत्साह को
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संजय परसाई की एक कविता
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वाह, यही तो मोह है..
ReplyDeleteधन्यवाद
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीनी भीनी सी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
समयचक्र: रंगीन चिठ्ठी चर्चा : सिर्फ होली के सन्दर्भ में तरह तरह की रंगीन गुलाल से भरपूर चिठ्ठे
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