3/17/2009

बहुत अच्छा लगता है

बहुत अच्छा लगता है
बच्चों के साथ रहना
तुतलाना / खेलना
कभी घोड़ा बन
पीठ पे लादे बरामदे में घूमना
तो कभी गुब्बारों के साथ
उछलना / और
चाबी वाली मोटर के पीछे भागना

बहुत अच्छा लगता है
रोते हुए बच्चे को
चन्दा मामा कहकर बहलाना
या आइसक्रीम खिलाकर चुप करना

बहुत अच्‍‍‍छा लगता है
बर्थ डे पर बच्चों का
केरम, वीडियो गेम
साँप-सीढ़ी, या जीन्स के लिए जिद करना
और / ना - नुकुर करने पर
उछलना, रोना, पैर पटकना
या चीजों का तोड़ना फोड़ना।
बहुत अच्छा लगता है
अपने अधिकारों के लिए
जीत की उम्मीद के साथ
नन्हें हाथों को
आवेश के साथ ऊपर उठते हुए देखना

और एक अच्छे मालिक सा
मूक हो सब मानता जाता हूँ मैं
और देता जाता हूँ कर्तव्य की गाँठ खोल
बिना नापे तोले अधिकारों के पीस

इस मंशा के साथ / कि
अधिकारों की इस आग को
जलाए रखेंगें
अपने अधिकारों के उपयोग होने तक ।
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संजय परसाई की एक कविता


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4 comments:

  1. sahi likha hai aapne...kai baar bahut achha lagta hai bachchon ke saath...

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  2. सुन्दर प्रस्तुति.

    सच्चा आनंद बच्चों संग ही मिलता है क्योंकि वहा निश्छल प्रेम के गंगा बहती है और कुत्सित स्वार्थ नहीं होते.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  3. मन की बात कहती हुई रचना...धन्यवाद इसे प्रस्तुत करने का...
    नीरज

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  4. बहुत अच्छा लगता है आप की सुंदर सुंदर कविता पढना.
    धन्यवाद

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