2/28/2009

कोई दीप जलाया होगा

गीत उल्फत का किसी और ने गाया होगा,
हादसों ने तुम्हें रातों में जगाया ह¨गा ।

आज फिर रहनुमाओं की झुकी-झुकी नज़रें,
आज फिर आदमी ने सर को उठाया होगा ।

रोशनी के लिए ताउम्र तरसता ही रहा,
उसने बस्ती में कोई दीप जलाया होगा ।

हरेक वक्त जो अपनों से रहा खौफ़ जदा,
वो मेरी मुल्क की तकदीर का साया होगा ।

शिवालयों में जिसने ढूँढा है हर बार खुदा,
उसने भगवान को अज़ान में पाया होगा ।

गोलियाँ सरहदों पे आज फिर चलीं ‘आशीष’
गु़फ्तगू करने को जालिम ने बुलाया होगा ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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4 comments:

  1. आज फिर रहनुमाओं की झुकी-झुकी नज़रें,
    आज फिर आदमी ने सर को उठाया होगा ।
    बहुत ही सुंदर और काबिल गजल है। और यह शेर तो बहुत ही उम्दा है। बधाई! बैरागी जी, इतनी खूबसूरत गजल पढ़वाने और एक गजलकार से मिलवाने का।

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  2. आज फिर रहनुमाओं की झुकी-झुकी नज़रें,
    आज फिर आदमी ने सर को उठाया होगा ।
    बहुत बढ़िया गजल पेश किया है आपने । गजल की हर लाईन लाजबाब है धन्यवाद

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  3. आज फिर रहनुमाओं की झुकी-झुकी नज़रें,
    आज फिर आदमी ने सर को उठाया होगा ।
    बहुत बढ़िया गजल पेश किया है आपने । गजल की हर लाईन लाजबाब है धन्यवाद

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  4. बहुत बढ़िया गजल . धन्यवाद

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