दिमाग में बजी
और इस तरह जन्म हुआ
भूख के पहले अनुभव का
फिर सक्रिय हुए हाथ
अलबत्ता रोटी तक पहुँचने में
एक लम्बा वक्त गुजरा
रोटी से ही शान्त होती है
पेट की आग
यह अनुभव दूसरा था
भूख से रोटी तक की
यात्रा कर चुके अनुभव
फिलहाल चैराहे पर हैं।
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प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता
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सुंदर!
ReplyDeleteसुन्दर रोचक सार्थक Please visit at manoria.blogspot.com
ReplyDeleteभूख की वास्तविक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteयह अनुभव दूसरा था
ReplyDeleteभूख से रोटी तक की
यात्रा कर चुके अनुभव
फिलहाल चैराहे पर हैं।
बहुत ही सुंदर भाव.
धन्यवाद