ये कोई इक बुत नहीं, अपना हिन्दुस्तान है ।
इसकी हर दीवार पर थी अम्न की इबारतें
गोलियों बारुद से अब भर गया मकान है ।
जिन फ़िजाओं में कभी होता था लोगों का मिलन,
आज सारे रास्ते क्यों बन गए वीरान हैं ?
झूठ हर जुबान पर है, झूठ का ही राज है,
सच तो हर पल मर रहा बिक रहा ईमान है ।
वहशत के दौर में क्या कुछ नहीं हमने सहा,
आदमी की भीड़ है, जाने कहाँ इन्सान है ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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इसकी हर दीवार पर थी अम्न की इबारतें
ReplyDeleteगोलियों बारुद से अब भर गया मकान है
बहुत अच्छा शेर कहा.
झूठ हर जुबान पर है, झूठ का ही राज है,
ReplyDeleteसच तो हर पल मर रहा बिक रहा ईमान है ।
वहशत के दौर में क्या कुछ नहीं हमने सहा,
आदमी की भीड़ है, जाने कहाँ इन्सान है ।
बहुत अच्छा कहा.
किस पंक्ति की प्रशंसा ज्यादा करे किस की कम। हर शब्द बोल रहा है,आज जा सच।बहुत-बहुत बधाई अंकुर जी को और विष्णु भैया फ़िर से आभार आपका।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा
ReplyDeleteझूठ हर जुबान पर है, झूठ का ही राज है,
ReplyDeleteसच तो हर पल मर रहा बिक रहा ईमान है ।
बहुत ही सुंदर प्रसुति की है आप ने , अंकुर जी का धन्यवाद इस कविता के लिये, ओर आप का धन्यवाद हम तक पहुचाने के लिये
बिल्कुल सही ...अंकुर जी का धन्यवाद .
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