गाँव गया
सब चिर-परिचित
चेहरे दिखे
सब पहले सा न था
वो बच्चे जो छोटे थे
अब बड़े हो गए
कभी गोद से
न उतरने वाले
अचरज से देखते
पौधे पेड़ बन चुके थे
शायद वो अब भी
मुझे पहचानते
झूम कर दे रहे
अपना परिचय
लेकिन
वो बरगद का पेड़
न दिखा
एक लम्बे इतिहास का गवाह
बरगद
आज खुद इतिहास बन गया
मोती भी अब न रहा
शेर सी बलिष्ठ काया का मोती
किसी गाड़ी के नीचे आ
छोड़ गया अपनी यादें
उण्डवा नदी ने भी बदल दी
अपनी राह
ऊपर से
सूखे ने चला दिया दराँता
धरती की फटी छाती
और उसमें से निकलती आग
उसकी प्यास का
अहसास करा रही है
बस स्टैण्ड भी चला गया
एक किलोमीटर दूर
बन गया एक नया गाँव
प्रकाश नगर
सड़क/जो हुई थी बननी शुरु
.....
संजय परसाई की एक कविता
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डाले।
बरसों बाद
ReplyDeleteगाँव गया
सब चिर-परिचित
चेहरे दिखे
सब पहले सा न था
वो बच्चे जो छोटे थे
अब बड़े हो गए
कभी गोद से
न उतरने वाले
अचरज से देखते
पौधे पेड़ बन चुके थे
dil ko chu gai apki rachana
bahut badhiya badhai
ReplyDeletegaaoN ki kisi amoolya dharohar si
ReplyDeletebahut hi sundar rachna.....
abhivyakti mei samay ke badlaav ke parinaam
(achhe-bure sb) saaf jhalakte haiN.
badhaaee svikaareiN. . . .
---MUFLIS---