लोग हैं तिरछे, तिरछी चालें,
यहाँ नहीं गलती हैं दालें ।
चलने से परहेज सभी को
कुर्सी के हैं सब मतवाले ।
अब तो तेरे ठाठ हैं बन्धु,
अंधियारे से कहे उजाले ।
हम तो ठहरे केवल डमरु,
कोई उठाले-कोई बजा ले ।
बेग़ैरत ये दुनिया देखी
आओ, दुनिया नईं बसा लें ।
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लोग हैं तिरछे, तिरछी चालें,
ReplyDeleteयहाँ नहीं गलती हैं दालें ।
" kya khen zmaana khraab hai...shandaar abhivykti.."
Regards
हम तो ठहरे केवल डमरू कोई उठा ले कोई बजा ले क्या खूब लिख है
ReplyDeleteदुनिया, दुनिया ही रहती है,
ReplyDeleteचाहे नयी हो, चाहे पुरानी।
तिरछे ज्यादातर है इसमें-
यहीं पड़ेगी दाल गलानी।।
damru bajaa le
ReplyDeletekahaa aapne
kal likh na dena
ghoomo gale me naag daale
बेग़ैरत ये दुनिया देखी
ReplyDeleteआओ, दुनिया नईं बसा लें ।
बहुत खुब कहा, कई बार मन यह सब सोच कर यही कहता है.
धन्यवाद