2/10/2009

दुनिया नई बसा लें


लोग हैं तिरछे, तिरछी चालें,
यहाँ नहीं गलती हैं दालें ।

चलने से परहेज सभी को

कुर्सी के हैं सब मतवाले ।

अब तो तेरे ठाठ हैं बन्धु,

अंधियारे से कहे उजाले ।

हम तो ठहरे केवल डमरु,

कोई उठाले-कोई बजा ले ।

बेग़ैरत ये दुनिया देखी

आओ, दुनिया नईं बसा लें ।

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5 comments:

  1. लोग हैं तिरछे, तिरछी चालें,
    यहाँ नहीं गलती हैं दालें ।
    " kya khen zmaana khraab hai...shandaar abhivykti.."

    Regards

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  2. हम तो ठहरे केवल डमरू कोई उठा ले कोई बजा ले क्या खूब लिख है

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  3. दुनिया, दुनिया ही रहती है,
    चाहे नयी हो, चाहे पुरानी।
    तिरछे ज्यादातर है इसमें-
    यहीं पड़ेगी दाल गलानी।।

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  4. damru bajaa le
    kahaa aapne
    kal likh na dena
    ghoomo gale me naag daale

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  5. बेग़ैरत ये दुनिया देखी

    आओ, दुनिया नईं बसा लें ।
    बहुत खुब कहा, कई बार मन यह सब सोच कर यही कहता है.
    धन्यवाद

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